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Thursday, September 30, 2021

आज है और वही है


 

जब भी हम 

बैठे साथ-साथ

जिंदगी आ बैठी

हमारे करीब 

और 

कितनी सहजता से

सुनती रही हमें।

तुम्हें खिलखिलाता देख

कुछ कह गई थी

कानों में मेरे।

सच कहूं

मुझे लगा जिंदगी तुम्हें

मुझसे अधिक नहीं पहचानती है।

अबकी 

जब भी दोबारा जिंदगी 

बैठगी 

हमारे साथ उस मुस्कुराने के वक्त

हम 

बताएंगे उसे

जिंदगी जी कैसे जाती है।

अक्सर देखता हूं

हमारे बीच 

थकी-मांदी सी

हांफती हुई

पसीने से लथपथ

ही जिंदगी बैठती है 

पास हमारे। 

देखा होगा तुमने भी

कभी भी मुस्कुराती नहीं

केवल

हमें देखती रहती है।

जानती हो 

क्या कहा था 

उस दिन

मेरे कान में जिंदगी ने

तुम्हें मुस्कुराता देख

कह रही थी

जिंदगी तो मैं हूं

फिर ये क्या है

जो उस चेहरे पर आ टिकी है।

मैं होले से कहता हूं

देखो

जिंदगी ही तो है

जो हमने बुनी है

जो हमने चुनी है। 

मैं 

जानता हूं जिंदगी और हमारे बीच

वह खुशियां हैं

जिन्हें

हम जीते हैं रोज

वही

आज है

और वही

सच।

इसके अलावा

कोई कल नहीं है। 

8 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना १ अक्टूबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत आभार श्वेता जी...।

      Delete
  2. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।

      Delete
  3. बहुत सुंदर संदीप जी। जिंदगी की मुस्कान हमारे अपनों की खुशी है। अपनों के साथ खिलखिलाते हुए जिन्दगी की मुस्कान थी विस्तार पाती है। भावभीने आत्मीय संस्कार का उद्घाटन करती रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका। हमेशा की तरह सारगर्भित प्रतिक्रिया, स्नेहिल आभार।

      Delete
  4. बहुत बहुत सुंदर।
    सार्थक भाव सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।

      Delete

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