ये
दुनिया
एक खारी नदी है
और हम
नमक पर
नाव खे रहे हैं।
नदी का नमक हो जाना
आदमी के खारेपन
का शीर्ष है।
नदी और आदमी
जल्द
अलग हो जाएंगे
नदी
नमक का जंगल होकर
रसातल में समा जाएगी
और
आदमी नाव में
नदी के जिस्म से
नमक खरोंच कर
ठहाके लगाएगा..।
नमक
नदी
और
आदमी
आखिर में
एक हो जाएंगे।
तब
नाव होगी
पतवार पर
कोई
नया पंछी बैठेगा
जो
दूसरी दुनिया से आकर
खोजेगा
नदी
आदमी
और जीवन।
क्या हमें
नदी को
नमक होने से बचाना चाहिए
और
खरोंचे जाने चाहिए
अपने पर जमे नमक के जिद्दी टीले...।
सारगर्भित !
ReplyDeleteभयावता को आगाह करती विनाश का संकेत देती गहन रचना।
बहुत आभार आपका...।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०२ -१२ -२०२१) को
'हमारी हिन्दी'(चर्चा अंक-४२६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आभार आपका..। मेरी रचना को मान देने के लिए...।
Deleteबहुत ही शानदार सृजन
ReplyDeleteबहुत आभार आपका..।
Deleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना आदरणीय
ReplyDeleteकभी मेरे ब्लाॅग पर भी पधारिए,सादर
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteआदमी का खारापन कैसे मीठेपन में बदले यही तो करना है
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