ये
दुनिया
एक खारी नदी है
और हम
नमक पर
नाव खे रहे हैं।
नदी का नमक हो जाना
आदमी के खारेपन
का शीर्ष है।
नदी और आदमी
जल्द
अलग हो जाएंगे
नदी
नमक का जंगल होकर
रसातल में समा जाएगी
और
आदमी नाव में
नदी के जिस्म से
नमक खरोंच कर
ठहाके लगाएगा..।
नमक
नदी
और
आदमी
आखिर में
एक हो जाएंगे।
तब
नाव होगी
पतवार पर
कोई
नया पंछी बैठेगा
जो
दूसरी दुनिया से आकर
खोजेगा
नदी
आदमी
और जीवन।
क्या हमें
नदी को
नमक होने से बचाना चाहिए
और
खरोंचे जाने चाहिए
अपने पर जमे नमक के जिद्दी टीले...।