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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

तुम चाहो तो तुम्हें मैं दे सकता हूँ


तुम चाहो तो तुम्हें मैं 

दे सकता हूँ
इस गर्म मौसम में 
सख्त धूप।
तुम्हें दे सकता हूँ
चटकती दोपहर
और 
परेशान चेहरों वाला समाज।
तुम्हें दे सकता हूँ
झंझावतों में उलझी जिंदगी
और 
चंद कुछ न कहती 
हाथ की लकीरें। 
तुम्हें मैं दे सकता हूँ
कोई सड़क तपकर पिघलती हुई
और 
पैरों के चीखते छाले।
तुम्हें मैं दे सकता हूँ 
जिंदगी का कुछ पुराना सा दर्शन
और 
एक खुराक खुशी। 
तुम्हें मैं दे सकता हूँ मुट्ठी में कैद उम्मीद
और 
बेतरतीब उखड़ती सांसें।
तुम्हें मैं दे सकता हूँ 
सूखे पेड़ों से झरती 
धूप पाकर खिलखिलाते पत्ते
दरारों की जमीन में 
शेष सुरक्षित जम़ीर। 
तुम्हें फरेब की हरियाली नहीं दे सकता
क्योंकि मैं जानता हूँ
बेपानी चेहरों वाला समाज
अंदर से सूख चुका है
बारी-बारी दृरख्त गिर रहे हैं
धरा के सीने पर। 
कोई झूठी हरियाली नहीं दे सकता तुम्हें।
सच देखो क्योंकि जो हरा है
वह भी अंदर से  
झेल रहा है भय का सूखा। 
हम बनाएंगे 
कोई राह इसी धरा पर 
जो जाएगी 
किसी पुराने हरे वृक्ष तक। 
आओ साथ चलें 
सच जीते हुए, पढ़ते हुए
क्योंकि सच उस अबोध बच्चे सा है
जिसे झूठ सबसे अधिक 
झुला रहा है अपनी गोद में...।


 

सोमवार, 4 अप्रैल 2022

एक दिन गिर जाएंगे सूखे पत्तों से


सूखती धरा 
पलायनवादी विचारधारा
आग में झुलसती प्रकृति
धरा के सीने से
पानी खींचते लोग
पानी पर चढ़कर 
अट्टहास करता बाजार।
नदियों के सीने पर 
उम्मीद की नमी तलाशते खेत
सिर पर बर्तन रख
घंटों का सफर 
तय करते लहुलूहान पैरों वाले बच्चे
भविष्य कहे जाते हैं
खोखले वर्तमान में थकती माताएं
छोड़ चुकी हैं 
पानी के लिए बच्चों का बचपन।
गोद और बचपन
अब सख्त सा सच है 
गोद में बचपन अब पत्थर हो गया है।
पानी ढोते बच्चों की आंखें 
लटक रही हैं पेट पर। 
धरती दहक रही है
बचपन सूखकर दरक रहा है
भावनाएं केवल 
कागज पर दर्द को 
समाज का दर्शन बता कर 
सतही प्रयास कर रहा है।
सूरज की गेंद 
लुढ़कती बढ़ रही है मानव की ओर
ताप का साम्राज्य
सबकुछ जलाने पर आमादा है
और हम
घरों में दुबके 
सतही स्वार्थी दृश्यों पर बहस में उलझे हैं।
प्रकृति का कारोबार 
हमें 
झुलसा देगा
पीढ़ियों तक दरकन होगी
और होगी सूखी धरा। 
सोचिए 
हम कहां जा रहे हैं
आंखों पर कारोबारी पट्टी बांधकर।
उंगली पकड़े बच्चे 
चल नहीं पा रहे हैं 
तपती धरा पर
एक दिन 
गिर जाएंगे सूखे पत्तों से।


 

अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...