Followers

Wednesday, May 11, 2022

तुम आयत हो


 

तुममें और मुझमें

कुछ

है

जो केवल

तुमसे होकर

मुझ तक आता है।

तुम आयत

हो

मुझ पर

गहरे उकेरी गई।

तुम्हारे चेहरे पर

अक्सर

कुछ सुर्ख सा महकता है

और मैं

तुम्हें एक सदी की भांति

सहेज लेता हूँ।

तुम्हारे ख्वाब

जो

टांक रखे हैं

तुमने

हमारे भरोसे की शाख पर।

बारी -बारी उतार

तुम्हारा

उन्हें धूप दिखाना

हमें करीब लाता है

सपनों के।

तुम्हारी खींची गई

उस

कच्ची दीवार पर लकीर

जिसे

मैंने जिंदगी कहा था

आज भी

हम अक्सर टहल आते हैं

दूर तक

निशब्द से

हमारी राह

अपनी राह

कोई और राह हमने

खींची ही नहीं।


12 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१३-०५-२०२२ ) को
    'भावनाएं'(चर्चा अंक-४४२९)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका। साधुवाद

      Delete
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका। साधुवाद

      Delete
  3. Replies
    1. जी बहुत आभार आपका। साधुवाद

      Delete
  4. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
  5. सुंदर सृजन

    ReplyDelete

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...