तुममें और मुझमें
कुछ
है
जो केवल
तुमसे होकर
मुझ तक आता है।
तुम आयत
हो
मुझ पर
गहरे उकेरी गई।
तुम्हारे चेहरे पर
अक्सर
कुछ सुर्ख सा महकता है
और मैं
तुम्हें एक सदी की भांति
सहेज लेता हूँ।
तुम्हारे ख्वाब
जो
टांक रखे हैं
तुमने
हमारे भरोसे की शाख पर।
बारी -बारी उतार
तुम्हारा
उन्हें धूप दिखाना
हमें करीब लाता है
सपनों के।
तुम्हारी खींची गई
उस
कच्ची दीवार पर लकीर
जिसे
मैंने जिंदगी कहा था
आज भी
हम अक्सर टहल आते हैं
दूर तक
निशब्द से
हमारी राह
अपनी राह
कोई और राह हमने
खींची ही नहीं।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१३-०५-२०२२ ) को
'भावनाएं'(चर्चा अंक-४४२९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी बहुत आभार आपका। साधुवाद
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी बहुत आभार आपका। साधुवाद
Deleteवाह!
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका। साधुवाद
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteज्योति जी आभार
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteसंगीता जी आभार
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteअनीता जी आभार
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