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Saturday, June 25, 2022

आदमी अक्सर घटता है

 

उम्र का पहिया

अनुभव 

का पथ होता है। 

सिंदूरी सांझ 

और 

स्याह रात के बीच

आदमी अक्सर घटता है

बंटता है

रचता है

खोजता है

पाता है

किसी मूल से टकराता है

किसी लकीर पर

कुछ गठानें बांधता है

आदमी इसी समय

विभाजित होकर

दोबारा जुड़ जाता है।

उम्र का अनुबंध 

सुबह देता है

दोबारा आदमी एक 

पहिया होकर

नापने लगता है स्वयं से दूरी 

और सांझ होते होते 

खेत हो जाता है।

उम्र में अनेक रात

भट्टी सा तपता है

एक दिन 

सुबह

दोपहर

सांझ

और 

रात होकर 

राख हो जाता है। 

अनुभव का पथ होता है

पहिया होता है

बस आदमी 

बदलता रहता है।

एक 

उम्र के अनुभव का पथ

दीवार पर 

सच में उकेरा जा सकता है

बेशक 

किसी सांझ के चेहरे पर

कोई लकीर की तरह।

4 comments:

  1. पंक्तियाें में बह गया.....

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  2. सत्य को उजागर करती रचना ....

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार(२७-०६-२०२२ ) को
    'कितनी अजीब होती हैं यादें'(चर्चा अंक-४४७३ )
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  4. जीवन का गहन सत्य।

    ReplyDelete

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