उम्र का पहिया
अनुभव
का पथ होता है।
सिंदूरी सांझ
और
स्याह रात के बीच
आदमी अक्सर घटता है
बंटता है
रचता है
खोजता है
पाता है
किसी मूल से टकराता है
किसी लकीर पर
कुछ गठानें बांधता है
आदमी इसी समय
विभाजित होकर
दोबारा जुड़ जाता है।
उम्र का अनुबंध
सुबह देता है
दोबारा आदमी एक
पहिया होकर
नापने लगता है स्वयं से दूरी
और सांझ होते होते
खेत हो जाता है।
उम्र में अनेक रात
भट्टी सा तपता है
एक दिन
सुबह
दोपहर
सांझ
और
रात होकर
राख हो जाता है।
अनुभव का पथ होता है
पहिया होता है
बस आदमी
बदलता रहता है।
एक
उम्र के अनुभव का पथ
दीवार पर
सच में उकेरा जा सकता है
बेशक
किसी सांझ के चेहरे पर
कोई लकीर की तरह।
पंक्तियाें में बह गया.....
ReplyDeleteसत्य को उजागर करती रचना ....
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार(२७-०६-२०२२ ) को
'कितनी अजीब होती हैं यादें'(चर्चा अंक-४४७३ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जीवन का गहन सत्य।
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