उम्र का पहिया
अनुभव
का पथ होता है।
सिंदूरी सांझ
और
स्याह रात के बीच
आदमी अक्सर घटता है
बंटता है
रचता है
खोजता है
पाता है
किसी मूल से टकराता है
किसी लकीर पर
कुछ गठानें बांधता है
आदमी इसी समय
विभाजित होकर
दोबारा जुड़ जाता है।
उम्र का अनुबंध
सुबह देता है
दोबारा आदमी एक
पहिया होकर
नापने लगता है स्वयं से दूरी
और सांझ होते होते
खेत हो जाता है।
उम्र में अनेक रात
भट्टी सा तपता है
एक दिन
सुबह
दोपहर
सांझ
और
रात होकर
राख हो जाता है।
अनुभव का पथ होता है
पहिया होता है
बस आदमी
बदलता रहता है।
एक
उम्र के अनुभव का पथ
दीवार पर
सच में उकेरा जा सकता है
बेशक
किसी सांझ के चेहरे पर
कोई लकीर की तरह।