तुममें और मुझमें
कुछ
है
जो केवल
तुमसे होकर
मुझ तक आता है।
तुम आयत
हो
मुझ पर
गहरे उकेरी गई।
तुम्हारे चेहरे पर
अक्सर
कुछ सुर्ख सा महकता है
और मैं
तुम्हें एक सदी की भांति
सहेज लेता हूँ।
तुम्हारे ख्वाब
जो
टांक रखे हैं
तुमने
हमारे भरोसे की शाख पर।
बारी -बारी उतार
तुम्हारा
उन्हें धूप दिखाना
हमें करीब लाता है
सपनों के।
तुम्हारी खींची गई
उस
कच्ची दीवार पर लकीर
जिसे
मैंने जिंदगी कहा था
आज भी
हम अक्सर टहल आते हैं
दूर तक
निशब्द से
हमारी राह
अपनी राह
कोई और राह हमने
खींची ही नहीं।