मैं खुश हूँ
तुम्हें मौसम महसूस होता है
खासकर बारिश।
तुम्हें
बचपन में
कुछ बूंदें
मैंने नन्हीं हथेली पर
थाम लेना सिखाया था।
देख रहा हूँ
बचपन की बारिश
अब विचारों में प्रवाहित है।
मैं तुम्हें
संस्कार और विरासत में
बूंदें ही देना चाहता था
जानता हूँ
तुम दोनों बूंदों से
सजा लोगी
प्रकृति
और
अपनी बगिया।
तुम्हें
अंदर से हरित पाकर
हम भी हो
गए हैं
उपजाऊ मिट्टी
जिससे सूखने का
दरकने का भय
कोसों दूर है।
(एक बिटिया बारिश की फोटोग्राफी में व्यस्त थी और दूसरी उसकी तल्लीनता पर फोकस कर रही थी...)
वाह! बहुत सुंदर!!!
ReplyDeleteआभार आपका विश्वमोहन जी...।
Deleteवर्षा की बूँदों में भीगने का आनंद कितना सुकून से भर देता है, प्रकृति के साथ आत्मीयता महसूस करने पर ऐसा ही होता है, सुंदर सृजन!
ReplyDeleteआभार आपका अनिता जी...।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteजी बहुत आभार
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार अभिलाषा जी।
Deleteबहुत बहुत मन तक टहल आती रचना
ReplyDeleteजी बहुत आभार
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