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Sunday, October 30, 2022

प्रकृति


एक छोटी कविता...

एक सुबह
हम जागे
और 
प्रकृति 
निखर उठी।


 

Tuesday, September 20, 2022

मैं तुम्हें देना चाहता था

मैं खुश हूँ
तुम्हें मौसम महसूस होता है
खासकर बारिश।
तुम्हें 
बचपन में 
कुछ बूंदें 
मैंने नन्हीं हथेली पर 
थाम लेना सिखाया था। 
देख रहा हूँ
बचपन की बारिश
अब विचारों में प्रवाहित है।
मैं तुम्हें 
संस्कार और विरासत में 
बूंदें ही देना चाहता था
जानता हूँ 
तुम दोनों बूंदों से 
सजा लोगी 
प्रकृति 
और 
अपनी बगिया। 
तुम्हें 
अंदर से हरित पाकर 
हम भी हो 
गए हैं 
उपजाऊ मिट्टी
जिससे सूखने का 
दरकने का भय 
कोसों दूर है।

(एक बिटिया बारिश की फोटोग्राफी में व्यस्त थी और दूसरी उसकी तल्लीनता पर फोकस कर रही थी...)

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...