ये जो पत्तों का बिछौना है
दरअसल
हरेक फूल को
नसीब नहीं होता।
सूखकर गिरना
और
जमीन में
खाद हो जाना
एक सच है
लेकिन
रोज असंख्य फूल टूटते हैं
गिरते हैं
कहां सुनाई देती है
हमें कुछ टूटने की आवाज़
कहां सुनाई देता है हमें
घटता मौन...।
फूल ही तो हैं
टूटकर बिखर ही जाएंगे
हां
दर्द हमें
तब सुनाई देता है
जब हम टूटते हैं
या हममे से कोई एक टूटता है।
इस धरा पर
न जाने कितना कुछ दरक जाता है
हमारे कारण।
हां फूल ही तो हैं
उनका दर्द कहां सुनाई देता है।
इस धरा पर
ReplyDeleteन जाने कितना कुछ दरक जाता है
हमारे कारण।
कटु सत्य है। हम निर्माण और विकास की गलतफहमी के नशे में मग्न हैं, परन्तु कर रहे हैं विनाश।
आभार आपका मीना जी।।
Deleteजी, सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआभार दीपक जी।
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