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शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022

सीलन


सर्द दिनों में 
मन भी 
ठिठुरता है
और पेड़ों से लिपट 
पूरी रात ओस में भीगता है।
सुबह सूर्य 
के आगमन पर
ओटले 
पर बैठ सुखाता है 
बीते दिनों की 
सीलन को। 
सुबह सूरज चढ़ते ही
शब्द हो जाता है
मन ही तो है
कभी कुछ नहीं कहता
केवल सुनता है
सच की शेष गाथाएं।


 

6 टिप्‍पणियां:


  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०४-१२-२०२२ ) को 'सीलन '(चर्चा अंक -४६२४) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय नमस्ते 🙏❗️

    सुबह सूरज चढ़ते ही
    शब्द हो जाता है
    मन ही तो है
    कभी कुछ नहीं कहता
    केवल सुनता है
    सच की शेष गाथाएं।
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ... मन की भाषा सुनना ही सबसे बड़ा सच है...
    मेरी रचना "मैं ययावारी गीत लिखूँ," मेरे ब्लॉग पर पढ़ने की बाद ब्लॉग पर ही दिए गए लिंक पर भी मेरी आवाज़ में दृश्यों की संयोजन की साथ अवश्य देखें और सुनें... सादर ❗️--ब्रजेन्द्र नाथ

    जवाब देंहटाएं
  3. अवचेतन की परते उघाड़ती प्रकृति से मन को जोड़ती सुन्दर पंक्तियाँ
    जय श्री कृष्ण जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रकृति और मन को जोड़ती सुन्दर रचना 🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह ...मन की सीलन पर बहुत खूब लिखा आपने

    जवाब देंहटाएं

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