तुम
मैं
और बारिश।
सच
कितना सुखद संयोग था।
बारिश सी तुम
मेरे जीवन पर
ओस की बूंद सी उभरीं
मैं
तुम्हें गर्म मौसम से बचाता रहा
ताकि
बंधी रहे उम्मीद
बारिश की
ओस की
रिश्तों की।
तुम अब भी मेरे आंगन में
मौसम की उमंग हो
ओस की वह बूंद
अब तक
सहेज रखी है मैंने
तुम्हारे भीतर
अपने भीतर
और
इस तरह सहेज पाया बारिश
बारिश की उम्मीद।
इस मौसम में बो दिया है
भरोसा
बारिश यूं ही साथ रहेगी
जैसे हम और तुम।
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका....साधुवाद।
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका....साधुवाद।
ReplyDeleteबहुत उम्दा ।
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