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मंगलवार, 17 जून 2025

नहीं आएगी वह खौफनाक रात

 हर सुबह कोई उम्मीद 

मन में कहीं

अंकुरित होती है

दोपहर तक 

उम्मीद का पौधा

उलझनों और घुटन के बीच

अपने आप को बचाता है

सांझ होते ही

उम्मीद उस पौधे के साथ मुरझाकर 

सूख जाती है। 

देर रात 

स्याह अंधेरा  

सूखी लटकी, हवा में डोलती 

उम्मीद की वो पत्तियां

कितने सवाल दबाए

अपनी पथराई आंखों से 

देखती रहती हैं। 

रात से सुबह का वह समय

दोबारा मन के ठहराव में कहीं

ओस को पाता है

उस उम्मीद के पौधे को 

दोबारा सींचता है

सुबह फिर 

पौधा नई उम्मीद के साथ 

अंकुरित हो उठता है

इस उम्मीद से 

वह खौफनाक रात नहीं आएगी आज।

नहीं

नहीं आएगी। 

मंगलवार, 22 अगस्त 2023

बारिश की उम्मीद

तुम
मैं 
और बारिश।
सच 
कितना सुखद संयोग था।
बारिश सी तुम 
मेरे जीवन पर 
ओस की बूंद सी उभरीं
मैं 
तुम्हें गर्म मौसम से बचाता रहा
ताकि 
बंधी रहे उम्मीद
बारिश की
ओस की
रिश्तों की। 
तुम अब भी मेरे आंगन में
मौसम की उमंग हो
ओस की वह बूंद
अब तक
सहेज रखी है मैंने
तुम्हारे भीतर
अपने भीतर 
और
इस तरह सहेज पाया बारिश
बारिश की उम्मीद
इस मौसम में बो दिया है
भरोसा
बारिश यूं ही साथ रहेगी
जैसे हम और तुम।


 

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