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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

चितचोर

 




मैंने

सांझ का आंचल

सूरज को

ओढ़ाकर

उसकी

हथेली पर

चितचोर लिख दिया...।

सांझ 

बावरी सी

शरमाई सी

सूरज से लिपट गई।

उसकी हथेली पर

बुनने लगी 

एक और सदी।

अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...