Followers

Showing posts with label उम्मीद बूंदों अपने तुम हम. Show all posts
Showing posts with label उम्मीद बूंदों अपने तुम हम. Show all posts

Thursday, September 2, 2021

हम और तुम


 











मैं 

तुम्हें 

इसी तरह देखता हूँ

मैं

तुम्हें 

प्रकृति में पानी की 

उम्मीद की तरह देखता हूँ।

हम और तुम 

क्या हैं

कुछ भी तो नहीं

केवल

उम्मीद की

बूंदों पर 

उम्र रखकर

जी जाते हैं

अपने आप को।


फोटोग्राफ भी मेरा ही है... फोटोग्राफ देख यह कविता सृजित हो गई...।





ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...