सुर्ख सच
जब उम्रदराज़ होकर
कोई किताब हो जाए
तब मानिये
उम्र का पंछी
सांझ की सुर्ख लालिमा
के परम को
आत्मसात कर चुका है।
उम्र और सांझ
परस्पर
साथ चलते हैं
उम्र
का कोई एक सिरा
सांझ से बंधा होता है
और
सांझ
का एक सिरा
उम्रदराज़ विचारों से बंधा होता है।
एक
किताब
उम्र
और
सांझ
आध्यात्म का चरम हैं।
सांझ लिखी जा सकती है
ठीक वैसे ही
उम्र विचारों में ढलकर
किताब हो जाती है।
आईये
सांझ के किनारे
एक उम्र की
किताब
सौंप आएं
सच और सच
को गहरे जीती हुई
नदी की लहरों को।
आखिर
उम्र और सांझ
दोनों ही प्रवाहित हो जाती हैं
एक किताब के श्वेत पन्नों पर...।