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रविवार, 19 दिसंबर 2021

उम्र और सांझ


सुर्ख सच 
जब उम्रदराज़ होकर
कोई किताब हो जाए
तब मानिये
उम्र का पंछी 
सांझ की सुर्ख लालिमा 
के परम को 
आत्मसात कर चुका है।
उम्र और सांझ
परस्पर
साथ चलते हैं
उम्र
का कोई एक सिरा
सांझ से बंधा होता है
और 
सांझ
का एक सिरा
उम्रदराज़ विचारों से बंधा होता है।
एक 
किताब
उम्र
और 
सांझ
आध्यात्म का चरम हैं।
सांझ लिखी जा सकती है
ठीक वैसे ही
उम्र विचारों में ढलकर
किताब हो जाती है।
आईये
सांझ के किनारे
एक उम्र की
किताब
सौंप आएं
सच और सच 
को गहरे जीती हुई 
नदी की लहरों को।
आखिर 
उम्र और सांझ 
दोनों ही प्रवाहित हो जाती हैं
एक किताब के श्वेत पन्नों पर...।

 

अभिव्यक्ति

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