मैंने
सुबह मुस्कुराते हुए देखा
बुजुर्ग दंपत्ति को
ठीक वैसे ही
जैसे
छत की मुंडेर पर बैठ
कोई लंबी दूरी तय कर आया
थका सा पक्षी
राहत पाता है।
छत पर गर्मी के बाद
ठंडी हवा
उम्र के चढ़ने के साथ
उठने वाले
कई दर्दों को राहत दे जाती है।
वृद्ध हो चुके उड़ते
सफेद बालों को देख
एक मुस्कान दोबारा पसर जाती है
उम्र की
उम्रदराज होते शरीरों की
खुशियों की।
चीखते और तपते दिनों
का दर्द
आज
नहीं है
आज सूख चुकी उम्र को
मिली है वायु
और
जो
अभी अभी कहीं बारिश में
सावन में
नहाकर आई थी।
वायु में
फुहारें थीं
उम्मीद थी
जीवन था
भरोसा था
और
अपनापन।
थका हुआ शरीर
थके हुए समय का प्रतीक नही होता
अनुभवों का एक पिरामिड अवश्य हो जाता है।
उम्र के इस दौर में
सच
और
सच
बहुत साफ नजर आता है
उन धुंधली नजरों से।
उम्र के इस दौर में
सच
साफ शब्दों में बोला जाता है
जुबान के लड़खड़ाने के बावजूद।
उम्र के इस दौर में
सच
सहेजा जाता है
थके और कमजोर से शरीर के
मजबूत हो चुके विचारों में।
उम्र के इस दौर में
सुबह अच्छी लगती है
क्योंकि
उम्र की सांझ
अंतर मिटा देती है
सुबह और दोपहर के बीच के तपिश भरे छोरों का।
छत
दोबारा आबाद है
क्योंकि
बुजुर्ग उस मुंडेर पर
उस पक्षी को देख
उसकी थकन
अपने अंदर महसूस कर रहे हैं
और
बहुत भरोसे के साथ
दो हाथ
कांपते हाथ
एक दूसरे पर
रख दिए जाते हैं
दरारों की भुरभुरी चुभन की परवाह किए बिना।