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सोमवार, 4 अप्रैल 2022

एक दिन गिर जाएंगे सूखे पत्तों से


सूखती धरा 
पलायनवादी विचारधारा
आग में झुलसती प्रकृति
धरा के सीने से
पानी खींचते लोग
पानी पर चढ़कर 
अट्टहास करता बाजार।
नदियों के सीने पर 
उम्मीद की नमी तलाशते खेत
सिर पर बर्तन रख
घंटों का सफर 
तय करते लहुलूहान पैरों वाले बच्चे
भविष्य कहे जाते हैं
खोखले वर्तमान में थकती माताएं
छोड़ चुकी हैं 
पानी के लिए बच्चों का बचपन।
गोद और बचपन
अब सख्त सा सच है 
गोद में बचपन अब पत्थर हो गया है।
पानी ढोते बच्चों की आंखें 
लटक रही हैं पेट पर। 
धरती दहक रही है
बचपन सूखकर दरक रहा है
भावनाएं केवल 
कागज पर दर्द को 
समाज का दर्शन बता कर 
सतही प्रयास कर रहा है।
सूरज की गेंद 
लुढ़कती बढ़ रही है मानव की ओर
ताप का साम्राज्य
सबकुछ जलाने पर आमादा है
और हम
घरों में दुबके 
सतही स्वार्थी दृश्यों पर बहस में उलझे हैं।
प्रकृति का कारोबार 
हमें 
झुलसा देगा
पीढ़ियों तक दरकन होगी
और होगी सूखी धरा। 
सोचिए 
हम कहां जा रहे हैं
आंखों पर कारोबारी पट्टी बांधकर।
उंगली पकड़े बच्चे 
चल नहीं पा रहे हैं 
तपती धरा पर
एक दिन 
गिर जाएंगे सूखे पत्तों से।


 

अभिव्यक्ति

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