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Sunday, October 10, 2021

एक सदी का सूखापन

 


तुम्हें कुछ फूल देना चाहता हूँ

जानता हूँ

अगली सदी

बिना फूलों की होगी।

इन्हें रख लेना

डायरी के 

पन्नों के बीच

उम्र के पीलेपन

के साथ 

संभव है

इन्हें भी 

जीना पड़े 

एक सदी का सूखापन।

सहेज लेना इन्हें

कम से कम 

पीढ़ियां 

देख तो सकेंगी 

इन्हें छूकर

और 

शायद इसी तरह बच सके

इनकी खुशबू

हमारा 

फूलों से प्रेम 

और 

फूलों 

के शरीर...।

जानता हूँ

किसी को फर्क नहीं पड़ता 

कि 

क्या कुछ खो चुके हैं हम।

फर्क पड़ेगा

जब हम

एक सूखे संसार में

रेतीले जिस्म

और 

सूखी आत्मा के बीच

हम 

नहीं खोज पाएंगे

कोई पक्षी

कोई फूल

कोई जीवन

और 

कोई उम्मीद...।


ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...