घर की खिड़की
पर
सीले
दरवाजे
की
एक फांस
में
लटका है
बचपन।
बंद
घर को
झीरियां
जीवित रखती हैं
वहां से आती
हवा
से
सीलती नहीं हैं
घर की यादें
बचपन
और
बहुत कुछ
जो
जिंदगी
अकेले में
एकांत में बुनती है।
एकांत में
बुने गए
दिनों पर
अब
समय के जाले हैं।
खिड़की
की वो
फांस
उम्रदराज़
दरवेश है
जो
संभाले है
मौन
के बीच सच
और
बचपन
और
यादें...।
खिड़की का दूसरा
हिस्सा
अकेलेपन के बोझिल
मौसम की पीड़ाएँ
झेल रहा है
वो
जानता है
फांस
और
उसके कर्म में
आए
बदलाव
और
झूलते बचपन
के बीच
बीतते
उम्र के कालखंड की
बेबसी को...।
ये
घर
और खिडक़ी
एक दिन
किताब
में गहरे समा जाएंगे...।