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Saturday, July 31, 2021

एक घर सजाते हैं

 सुनो ना...

एक घर सजाते हैं

दहलीज पर

सपने बिछाते हैं

छत पर

सुखाते हैं कुछ

थके और सीले से दिन।

बाहर

बरामदे में

आरामकुर्सी पर

लेटा आते हैं

उम्मीदों को

इस उम्मीद से कि

उन्हें एक उम्र को

सजाना है खुशियों से।

घर के दीवारों पर

कीलें नहीं लगाएंगे

क्योंकि 

वहां

हम खुशियों को जीते

अपने रंग

सजाना चाहते हैं

खुशियों और रंगों में क्या कोई कील

अच्छी लगती है भला

वो भी जंक लगी

अंदर तक भेदती जिद्दी कील। 

घर की खिड़की पर 

हम

बैठाएंगे 

तुलसी का पौधा

जो 

हवा से

बात करते हुए

समझता रहेगा 

कि यह घर

तुम्हारा

सुखद अहसास चाहता है।

छत पर हम

कोई सफेद सा 

सच बांध देंगे

ताकि

हमें दिखाई देता रहे 

वह सच

कि दुनिया में

सबकुछ सफेद कहां होता है।

रसोई में 

हम मिलकर

सजाएंगे

कुछ कांच की पारदर्शी बरनी

जिससे 

झांकते रहे

तुम्हारे नेह से भीगे

अचार की 

गुदगुदी सी खटास

जो

घोलती रहे

ताउम्र मिठास।

घर के बरामदे में

लगाएंगे एक नीम

पीपल

और

आंवला

ताकि 

उम्र की थकन तक

हम सहेज लें

अपने हिस्से के वृक्ष

जो

देते रहें हमें

उनकी अपनी श्वास।

दरवाजे पर

हम 

गौरेया लिख देंगे

जानता हूं

तुम मुस्कुरा उठोगी

लेकिन

सच तो है

वह आकर्षण का नियम

और

गौरेया का लौटना।

हम छत पर

रखेंगे

कुछ 

सकोरे उम्मीद के

जहां

प्यासे पक्षी चोंच डुबोकर

नहाएंगे 

और

हमारे ही आंगन बस जाएंगे।




फोटोग्राफ- अखिल हार्डिया, इंदौर, मप्र- वरिष्ठ वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर 




ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...