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घर नमक उम्र श्वेत स्वप्न खारा कोरों के बीच गहरा सच लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

घर नमक नहीं हो सकता

मुझे याद है

आज भी

तुम्हारी आंखों में

उम्र के सूखेपन के बीच

कोई स्वप्न पल रहा है

कोई

श्वेत स्वप्न। 

तुम जानती हो

कोरों में नमक के बीच

कोई स्वप्न

कभी भी 

खारा नहीं होता।

अक्सर

तुम स्वप्न को घर कहती हो

और 

मैं

घर को स्वप्न।

कितना मुश्किल है

घर को स्वप्न कहना

और

कितना सहज है

स्वप्न को घर मानना।

मैं जानता हूं

तुम्हारी आंखों की कोरों के बीच 

जो नमक है

वही

घर है

नींव है

जीवन है

और गहरा सच।

तुम अक्सर कहती हो

घर नमक नहीं हो सकता

हां

सच है

लेकिन

आंखें नमक हो सकती हैं

जीवन भी नमक हो सकता है

और 

गहरा मौन भी। 

एक उम्र के बाद

जब जीवन का सारा खारापन

सिमटकर

कोरों पर हो जाता है जमा

तब

जिंदगी 

बहुत साफ दिखाई देती है

एकदम

तुम्हारे स्वप्न की तरह

जिसमें 

तुम हो

मैं हूं

एक घर है

और 

नमक झेल चुकी 

तुम्हारी ये

पनीली हो चुकी आंखें।




अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...