मुझे याद है
आज भी
तुम्हारी आंखों में
उम्र के सूखेपन के बीच
कोई स्वप्न पल रहा है
कोई
श्वेत स्वप्न।
तुम जानती हो
कोरों में नमक के बीच
कोई स्वप्न
कभी भी
खारा नहीं होता।
अक्सर
तुम स्वप्न को घर कहती हो
और
मैं
घर को स्वप्न।
कितना मुश्किल है
घर को स्वप्न कहना
और
कितना सहज है
स्वप्न को घर मानना।
मैं जानता हूं
तुम्हारी आंखों की कोरों के बीच
जो नमक है
वही
घर है
नींव है
जीवन है
और गहरा सच।
तुम अक्सर कहती हो
घर नमक नहीं हो सकता
हां
सच है
लेकिन
आंखें नमक हो सकती हैं
जीवन भी नमक हो सकता है
और
गहरा मौन भी।
एक उम्र के बाद
जब जीवन का सारा खारापन
सिमटकर
कोरों पर हो जाता है जमा
तब
जिंदगी
बहुत साफ दिखाई देती है
एकदम
तुम्हारे स्वप्न की तरह
जिसमें
तुम हो
मैं हूं
एक घर है
और
नमक झेल चुकी
तुम्हारी ये
पनीली हो चुकी आंखें।