मुझे भी।
तुम्हें
उसे रौंदकर
बनाना है
चीत्कार करता
महत्वाकांक्षी नगर।
मुझे
केवल जंगल चाहिए
जिसमें
हमारे जंगल का प्रतिबिंब
नजर न आए।
हमारा
जंगल तुम रख लो
जिसमें
केवल सूखा है
चीख हैं
और कुछ
अस्थियां
सूखी हुई
उन वन्य जीवों की
जिनसे हम छीन चुके हैं
उनका जंगल...।
तुम
जंगल
को नहीं समझ सकते
क्योंकि
हम
अमानवीय और हिंसक हैं।
छोड़ दीजिए
उनका जंगल
जिसमें
वन्य जीव
गढ़ते हैं
एक सभ्य जीवन...।