जहाज होती है
पानी का जहाज।
कभी
सतह पर
शांत
बहती
कभी
तेज हवा में
हिचकोले लेती।
कभी
मीलों चलकर मुस्कुराती
कभी
पल भर में
खीझ जाती।
कभी
अथाह सागर पर
लिख देती
भरोसा
कभी
धोखे पर
चीख उठती।
कभी
तैरते हुए किनारे लग जाती
फिर
लौट आती
बीच समुद्र के
कभी
किनारे ही डूब जाती।
जिंदगी
जहाज है
पानी का जहाज।
कभी
शांत लहरों पर
गीत गुनगुनाती
कभी
तूफान में
भयाक्रांत हो जाती।
जहाज
और
जिंदगी
दोनों में समानता है
कि
दोनों
उम्रदरा़ज होकर
किनारे
लग जाते हैं
और
एक दिन
टूटकर
बिखर जाते हैं...।