नदी
कह रही है
प्राण हैं
उसमें
जो तुम्हारे
प्राण की भांति ही
जरूरी हैं।
नदी
सवाल करती है
क्यों
मानवीयता का
चेहरा
दरक रहा है।
नदी के शरीर की
ऊपरी सतह
की दरकन
अमानवीय
आदमियत है।
गहरी
दरकन
भरोसे और रिश्ते
की चटख
का
परिणाम है।
नदी किनारे
अब
अक्सर सूखा
बैठा मिलता है
नदी
उसे भी
साथ लेकर
चलती है
समझाती है
मानवीय भरोसे
के
पुराने सबक।
नदी चाहती है
उसके
प्राण
की वेदना
पर
बात होनी चाहिए
पानीदार आंखों
की
सूखती
पंचायतों के बीच...।