उम्र के कुछ पन्ने
बहुत सख्त होकर
सूखे से
दोपहर के दिनों
की गवाही हैं..।
सूखे पन्नों पर
अनुभव का सच है
जो उभरा है अब भी
उन्हीं सूखे पन्नों
के खुरदुरे शरीर पर।
पन्ने का सूख जाना
समय का पीलापन है
शब्दों का नहीं।
समय
सिखा रहा है
अपनी खुरदुरी पीठ
दिखाते हुए
खरोंच के निशान
जो
दिखाई नहीं देते
दर्द देते हैं।
उम्र का हरापन
भी जिंदा है
शब्दों
की मात्राओं के शीर्ष पर
अभी पीला नहीं हुआ है।
हरे से पीले हो जाने में
कुछ नहीं बदलता
बस
एक उम्र सख्त होना सिखा जाती है।
पीले पन्नों की किताब में
अभी कुछ श्वेत हैं
अनुभव का
खिलखिलाता हरापन
लिखना चाहता हूँ
उन पर।
देख रहा हूँ
पीले पन्नों में
अनुभव के कुछ शब्द
घूर रहे हैं
वे
अब भी सहज नहीं हैं।
(फोटोग्राफ /गजेन्द्र पाल सिंह जी...। आभार)