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बुधवार, 2 जुलाई 2025

दरारों के बीच देखिएगा कहीं कोई पौधा

 कहीं किसी सूखती धरा के सीने पर

कहीं किसी दरार में

कोई बीज 

जीवन की जददोजहद के बीच

कुलबुलाहट में जी रहा होता है।

बारिश, हवा, धूप 

के बावजूद

दरारों में बसती जिंदगी

खुले आकाश में जीना चाहती है।

कोई पौधा 

जब

वृक्ष होकर देता है छांव

फल

जीवन

हवा

और बहुत कुछ।

तब उसे सार्थकता का होता है अहसास।

दरारों के बीच देखिएगा

कहीं कोई पौधा

यदि

नजर आ जाए 

तो 

बना दीजिएगा ठहरकर

दो पल

उसकी राह आसान।

उसके और खुले आसमान के बीच

के उस अंधेरे को

घुटन को

कम कर दीजिएगा

उस दरार को मिटाकर।


मंगलवार, 17 जून 2025

नहीं आएगी वह खौफनाक रात

 हर सुबह कोई उम्मीद 

मन में कहीं

अंकुरित होती है

दोपहर तक 

उम्मीद का पौधा

उलझनों और घुटन के बीच

अपने आप को बचाता है

सांझ होते ही

उम्मीद उस पौधे के साथ मुरझाकर 

सूख जाती है। 

देर रात 

स्याह अंधेरा  

सूखी लटकी, हवा में डोलती 

उम्मीद की वो पत्तियां

कितने सवाल दबाए

अपनी पथराई आंखों से 

देखती रहती हैं। 

रात से सुबह का वह समय

दोबारा मन के ठहराव में कहीं

ओस को पाता है

उस उम्मीद के पौधे को 

दोबारा सींचता है

सुबह फिर 

पौधा नई उम्मीद के साथ 

अंकुरित हो उठता है

इस उम्मीद से 

वह खौफनाक रात नहीं आएगी आज।

नहीं

नहीं आएगी। 

दरारों के बीच देखिएगा कहीं कोई पौधा

  कहीं किसी सूखती धरा के सीने पर कहीं किसी दरार में कोई बीज  जीवन की जददोजहद के बीच कुलबुलाहट में जी रहा होता है। बारिश, हवा, धूप  के बावजूद...