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Friday, September 24, 2021

तर्क से परे है प्रेम

 



प्रेम
तर्क से परे है
सख्त
हो जाना
प्रेम की ओर
बढ़ने की अवस्था है।
पत्थरों पर से
पानी के बहाव को
प्रेम
कहा जा सकता है।
पेड़
की जमीन से
किसी बेल का
उस सूखे तन से
लिपटना प्रेम है।
फूलों के जिस्मों की गंध
पर
मंडराते भंवरों
का नेहालाप प्रेम है।
पत्तियों की हरीतिमा
वाली उम्र में
किसी सूखे पत्ते की
दस्तक
प्रेम है।
बादलों का सूर्य के चेहरे
से लिपटना प्रेम है।
बारिश की पहली
बूंद की तृप्ति
चातक का प्रेम है।
मोर का
नृत्य और बावरापन
मौसम से
प्रेम है।
सूखी धरा पर
बारिश की बूंदों
का
स्पर्श प्रेम है।
प्रकृति का हर
जर्रा प्रेम सिखाता है
हां
प्रेम
तर्क नहीं चाहता
और
सवाल भी नहीं पूछता
बस
मौन है
और
उस प्रेम के वक्त
बहता नेहालाप...।


ये हमारी जिद...?

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