प्रेम
तर्क से परे है
सख्त
हो जाना
प्रेम की ओर
बढ़ने की अवस्था है।
पत्थरों पर से
पानी के बहाव को
प्रेम
कहा जा सकता है।
पेड़
की जमीन से
किसी बेल का
उस सूखे तन से
लिपटना प्रेम है।
फूलों के जिस्मों की गंध
पर
मंडराते भंवरों
का नेहालाप प्रेम है।
पत्तियों की हरीतिमा
वाली उम्र में
किसी सूखे पत्ते की
दस्तक
प्रेम है।
बादलों का सूर्य के चेहरे
से लिपटना प्रेम है।
बारिश की पहली
बूंद की तृप्ति
चातक का प्रेम है।
मोर का
नृत्य और बावरापन
मौसम से
प्रेम है।
सूखी धरा पर
बारिश की बूंदों
का
स्पर्श प्रेम है।
प्रकृति का हर
जर्रा प्रेम सिखाता है
हां
प्रेम
तर्क नहीं चाहता
और
सवाल भी नहीं पूछता
बस
मौन है
और
उस प्रेम के वक्त
बहता नेहालाप...।
तर्क से परे है
सख्त
हो जाना
प्रेम की ओर
बढ़ने की अवस्था है।
पत्थरों पर से
पानी के बहाव को
प्रेम
कहा जा सकता है।
पेड़
की जमीन से
किसी बेल का
उस सूखे तन से
लिपटना प्रेम है।
फूलों के जिस्मों की गंध
पर
मंडराते भंवरों
का नेहालाप प्रेम है।
पत्तियों की हरीतिमा
वाली उम्र में
किसी सूखे पत्ते की
दस्तक
प्रेम है।
बादलों का सूर्य के चेहरे
से लिपटना प्रेम है।
बारिश की पहली
बूंद की तृप्ति
चातक का प्रेम है।
मोर का
नृत्य और बावरापन
मौसम से
प्रेम है।
सूखी धरा पर
बारिश की बूंदों
का
स्पर्श प्रेम है।
प्रकृति का हर
जर्रा प्रेम सिखाता है
हां
प्रेम
तर्क नहीं चाहता
और
सवाल भी नहीं पूछता
बस
मौन है
और
उस प्रेम के वक्त
बहता नेहालाप...।
बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका मनोज जी।
Deleteजी हाँ, प्रेम सत्य ही तर्क से परे होता है। उसके लिए न आयु की सीमा होती है, न जन्म का बंधन और उसे शब्दों की भी आवश्यकता नहीं। आपने जो कहा, सच कहा।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका जितेंद्र जी।
Deleteजी बहुत आभार आपका कामिनी जी। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए साधुवाद।
ReplyDeleteप्राकृतिक सुंदरता के साथ प्रेम की खूबसूरती को बयां करती बहुत ही प्यारी रचना!
ReplyDeleteबेहद प्रेम युक्त रचना आदरणीय ।
ReplyDeleteसुंदर प्रेममयी रचना ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत खूबसूरत सृजन।
ReplyDeleteसच कहें तो इतनी गहराई से हर वस्तु में प्रेम वहीं देख सकता है जो स्वयं महसूस करने की संवेदना रखता हो ।
साधुवाद।