Followers

Showing posts with label बचपन सैर खूबसूरत कल वादा परिवार रेडियो वक्त आंच अंगीठी परिवार रसोई मां. Show all posts
Showing posts with label बचपन सैर खूबसूरत कल वादा परिवार रेडियो वक्त आंच अंगीठी परिवार रसोई मां. Show all posts

Sunday, September 19, 2021

बचपन की सैर पर हैं आप

 


कभी 

जब उदास होता हूं

लौट जाता हूं

बचपन की राह

यादों की उंगली थामकर।

कितने खरे थे

जब 

शब्दों में तुतलाहट थी

बेशक कहना नहीं आता था

लेकिन

छिपाना भी नहीं आता था।

कितनी खुशियां थीं

कपड़ों में रंग खोजते थे

और रंगों में जीवन।

अब 

जीवन में रंगों को खोजते हैं

बहुत धुंधला सा गया है

खुशी का रंग

अपनेपन का रंग

फीका सा है रंगों का जायका

और

अधमिटी सी है

रंगों में खुशियों को खोजने की 

इबारत।

दोस्त थे 

जो अब तक यादों में

यदाकदा ही चले आते हैं

और 

घूम आता हूं उनके साथ

पुराने बगीचे की मुंडेर तक

देर सांझ तक

खड़ा रहता हूं

उनके साथ।

सूर्यास्त देखता हूं अब भी

लेकिन

कितना कुछ अस्त हो जाता है

हर रोज

मेरे अंदर भी।

तब जेबें अक्सर

फटी रहती थीं

लेकिन न जाने

खुशियां कहां अटकी रह जाती थीं

उन फटी जेबों के 

उधड़े से धागों में।

देखता हूं

अब जेब मजबूत है, सिली हुई

लेकिन 

सीली सी है

कभी सुख नहीं दे पाई

वह बचपन वाला। 

पहले बैठते थे

परिवार में

मां के पास रसोई में

अंगीठी की आंच तापते हुए।

पिता के पास तखत पर 

सुनते थे

उन्हें कोई भजन गुनगुनाते हुए। 

सोचता हूं कैसा वक्त था

कैसे लोग थे

कैसे हम थे

कैसी खुशियां थीं

जो मुटठी भर थीं 

लेकिन

कभी खत्म नहीं हुईं।

तब साइकिल थी

अक्सर चेन उतर जाया करती थी

लेकिन

आज तक भाग रही है मन के किसी रास्ते पर।

पहले रेडियो था

जो पूरे परिवार के बीच बजता था

अब तक

उसके गीत

हमारी जुबां पर हैं

और आज

कितना शोर है

और कितनी भागमभाग।

कहां थमेंगे

कैसे और क्यों

और 

कितना भागेंगे हम।

कोई मंजिल है...?

अकेले 

कभी यूं ही मुस्कुराता हूं

देखता हूं

घर में कुछ बो पाया हूं

जो महसूस कर लेता है

और कहता है

बचपन की सैर पर हैं आप

और मैं

लौट आता हूं

आज में

उस खूबसूरत कल से 

दोबारा लौटने का वादा कर।



कागज की नाव

कागज की नाव इस बार रखी ही रह गई किताब के पन्नों के भीतर अबकी बारिश की जगह बादल आए और आ गई अंजाने ही आंधी। बच्चे ने नाव सहेजकर रख दी उस पर अग...