इस बाज़ार से
कुछ
बचपन बचा पाता...।
काश
मुस्कान का भी
कोई
कारोबार खोज पाता।
काश
तुम्हारे लिए
सजा पाता कोई
रंगों भरा आसमान।
जानता हूँ
कि
फटे लिबास में
तुम्हारी हंसी
मुझे
चेताती है हर बार
दिखाती है
हमारे समाज को आईना।
तुम्हारी मुस्कान निश्छल है
लेकिन
तुम्हारी भूख
हमारे समाज के चेहरे पर तमाचा।
मैं जानता हूँ
तुम सशक्त हो
क्योंकि तुम
भूख की पीठ पर बैठ
मुस्कुरा रहे हो...।
हमारी दुनिया में
बचपन
अब
तुम्हारी तरह कहाँ जीया जा सकता है।
मैं जानता हूँ
तुम्हारी दुनिया में
प्यार एक गुब्बारे की तरह है
और
हमारे यहाँ बचपन
उम्र के गुब्बारे की तरह
होकर
गुबार सा हो जाता है।