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शनिवार, 3 अप्रैल 2021

स्याह वक्त बोध का शिखर है



दो 

मौसम

दो 

उम्र 

और 

सारे सच।

अबोध सुर्ख

और 

स्याह बुढ़ापा

दोनों

गहरे होते हैं।

उम्र का सुर्ख 

मौसम

अबोध से बोध 

की ओर 

सफर है।

उम्र का स्याह

वक्त

बोध का शिखर है।

दो 

रंग उम्र नहीं हो सकते

उम्र 

रंग से उकेरी जा 

सकती है।

कोई 

सर्द सुबह 

कुछ भीग रहा होता है

अंतस 

में गहरे

वो सूखकर

स्याह हो जाता है

बुजुर्ग 

हो जाता है।

स्याह मौसम में 

सुर्खी को समझना

अबोध वक्त

को 

दोबारा टांकने जैसा है।

थकी उम्र की

धुंधली पायदान

पर 

केवल 

सच दिखता है

सुर्खी और स्याह 

मौसम के बीच।



अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...