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शनिवार, 1 मई 2021

बोनसाई दुनिया


 कुछ देर वो बतियाया

रहा

वृक्ष से।

वृक्ष कहने लगा

मैं थक गया हूँ

एक जगह 

खड़े रहकर।

अब चलना 

चाहता हूँ

अगली पूरी सदी।

उसने 

झल्लाते हुए कहा

देखो मेरे

जिस्म

को 

तुम्हें ही सहेज रहा हूँ

सदियों से।

तुम्हारे लिए 

जड़ हो गई है 

काया मेरी।

जानते हो तुम्हारे जीवन 

की चिंता में

कई मौसम सूख गए

कई

आंधियाँ सही हैं

ठंड में ठिठुरन 

से 

मेरा शरीर भी 

कंपकंपा उठा है।

मेरे यौवन 

से

मेरे उम्रदराज 

होने 

तक सफर में 

केवल तुम्हारे ही

जीवन को 

गढ़ता रहा...।

देखो दिखाता हूँ तुम्हें

ये 

देखो

तुम समाए हो 

मेरे शरीर

में

गहरे बहुत गहरे।

वृक्ष की बातें 

सुनता आदमी

अब झल्ला उठा

और

सीना तानकर बोला

अब 

तुम्हें मेरे लिए

जीने की जरूरत नहीं है

मैं 

अपनी दुनिया बसाना 

जानता हूँ

और हां सुनो

वो 

हमारी बोनसाई दुनिया है

तुम 

चाहो तो 

चले जाओ

किसी और दुनिया में

हमें 

ये 

इतने पेड़ नहीं चाहिए।

ठगा सा पेड़

अपने 

सदियों से 

जमें और सूजे 

पैरों को देख रहा था

ये सोचते हुए

अब 

यहां से जाना है

किसी और दुनिया में

जहाँ 

आदमी 

अब भी 

इंसान है

लेकिन इन 

पैरों से 

कितनी दूरी मापी जा सकेगी।

भरोसे 

की टूटन

बहुत गहरी होती है

उसकी गूंज 

अब सुनाई देने लगी है।

झल्लाया आदमी

वहां से

चला गया।

वृक्ष ने भी

पैर उठाया

और 

धराशायी हो गया।

दूर 

बोनसाई दुनिया 

झूम रही थी

और 

वृक्ष के पत्ते 

हवा 

के साथ बारी-बारी 

उड़ 

त्याग रहे थे शरीर

और 

ये 

दुनिया...।  

अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...