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Monday, November 7, 2022

प्रदूषण बहुत है

 वह

साठ बरस का व्यक्ति

हंसते हुए कह रहा था

कि 

बाबूजी पुरवाई तो मर्दांना हवा है

उससे कोई दिक्कत नहीं

वह बीमार नहीं करेगी।

हां

पछुआ जो जनाना हवा है

उससे बचियेगा

वह बीमार कर देगी।

मैं सोचने लगा

जिसकी कोख से जन्म लिया

जिसने पूरी उम्र संवारा

जिसने 

पीढ़ी को बढ़ाया

वही जनाना

विचारों में इतनी दर्दनाक इबारत क्यों है?

सोचता हूं

हमने कैसा समाज बनाया है

हवाओं को अपने स्वार्थ और जिद के अनुसार

नामों और सनक में बांट दिया है।

तभी तो पर्यावरण अधिक खराब है

और 

सुधर नहीं रहा 

क्योंकि केवल

बात प्राकृतिक पर्यावरण की नहीं

सामाजिक पर्यावरण की भी है।

सोचता हूं 

भला कब तक नोंचते रहेंगे हम

अपनों को

सच को

और

मानवीयता को।

कब उतार फैंकेंगे हम

अपनी भोली शक्ल पर चिपटा रखे

बेशर्म विचारों को।

बदल दीजिए क्योंकि

प्रदूषण बहुत है। 

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...