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Thursday, April 22, 2021

मुखौटे


 चेहरों 

का 

अपना कोई 

समाज नहीं होता।

चेहरे 

समाज होकर

गढ़ते हैं

कोई

वाद।

चेहरों 

के

मुखौटे

विद्रोही होते हैं

उनका अपना

समाज होता है।

चेहरे मुखौटे

ओढ़ 

सकते हैं

मुखौटे

चेहरे

को 

ढांक लेते हैं

अपने हुनर से।

मुखौटों

का हुनर

सीख रहा है आदमी।

मुखौटों

वाला समाज

गढ़ रहा है

अपनी काया।

समाज और मुखौटों

के 

बीच 

कोई 

अदद 

सच है

जो 

चेहरा हो जाया करता है।

चेहरे 

मुखौटों के समाज

का 

आधिपत्य स्वीकार 

कर चुके हैं।

एक दिन

मुखौटों

के 

पीछे खोजा जाएगा

असल चेहरा।

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...