चेहरों
का
अपना कोई
समाज नहीं होता।
चेहरे
समाज होकर
गढ़ते हैं
कोई
वाद।
चेहरों
के
मुखौटे
विद्रोही होते हैं
उनका अपना
समाज होता है।
चेहरे मुखौटे
ओढ़
सकते हैं
मुखौटे
चेहरे
को
ढांक लेते हैं
अपने हुनर से।
मुखौटों
का हुनर
सीख रहा है आदमी।
मुखौटों
वाला समाज
गढ़ रहा है
अपनी काया।
समाज और मुखौटों
के
बीच
कोई
अदद
सच है
जो
चेहरा हो जाया करता है।
चेहरे
मुखौटों के समाज
का
आधिपत्य स्वीकार
कर चुके हैं।
एक दिन
मुखौटों
के
पीछे खोजा जाएगा
असल चेहरा।