Followers

Showing posts with label लोकतंत्र बदहवास विचारों भीड़ पानी रेत के चमकीले दरिया छाले भीड़. Show all posts
Showing posts with label लोकतंत्र बदहवास विचारों भीड़ पानी रेत के चमकीले दरिया छाले भीड़. Show all posts

Wednesday, May 26, 2021

भीड़ के पैरों में गहरे छाले हैं



खोज

के परे एक और

संसार है।

चेहरे हर बार

बिकते नहीं

चेहरों

का

अपना लोकतंत्र है।

थकी हुई

भीड़

बदहवास विचारों से

दूर भाग रही है।

भीड़

के पैरों में

युग से

गहरे छाले हैं।

छाले

शोर मचा रहे हैं

गर्म रेत पर

दूर कहीं

कोई

पानी बेच रहा है

रेत के चमकीले मटकों में।

आवाज़

के पैर हैं

वो

घुटने के बल

रेंग रही है

दरिया में

अगली सुबह तक...।


--------------------


आर्ट- श्री बैजनाथ सराफ ’वशिष्ठ’ जी, खंडवा, मप्र 

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...