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सोमवार, 24 मई 2021

वृक्ष की मौत एक सदी की मौत है

 


एक दिन

केवल थके हुए शरीर होंगे

झुलस चुके

मन

विचार और मानवीयता लेकर। 

बिलखते बच्चों को छांह 

नहीं दे पाएंगे

चाहकर भी।

परछाईयों 

की तुरपाई कर

नहीं

बना पाएंगे

हम

कोई वृक्ष।

हांफते शरीर 

झुलसते बच्चों के सिर 

ओढ़ा देंगे

परछाई की 

आदमकद सच्चाई। 

सूखी जमीन 

तब नहीं पिघलेगी

हमारे आंसुओं से भी

क्योंकि

हमारे आंसू

में केवल दर्द का 

नमक होगा

और 

इतिहास गवाह है

नमक पाकर जमीन

बंजर हो जाया करती है।

वृक्षों को

देख लेने दीजिए

बच्चों को

कि 

कोई कल

ऐसा भी आएगा

जब 

जंगल 

ठूंठों के रेगिस्तान होंगे

कुओं में

पानी की जगह

सूखी अस्थियां होंगी

बेजान परिंदों की।

हवा से उम्मीद भी

सूख जाएगी

क्योंकि 

रेगिस्तान में 

हवा 

का कोई शरीर नहीं होता

मन नहीं होता 

और आत्मा तो 

कतई नहीं होती।

हमारी सभ्यता में 

सब

यूं ही

छूटता जा रहा है पीछे

एक दिन

आदमी 

और

जिंदगी की हरेक उम्मीद

छूट जाएगी बहुत पीछे

तब केवल

चीखता हुआ अतीत होगा

जो 

मानव सभ्यता के मिट जाने पर

चीखेगा

और कहेगा

काश जाग जाते 

समय पर

बच्चों के लिए

अपने लिए...। 

एक वृक्ष की मौत

एक सदी की मौत है

ये 

सबक समझ लीजिए

क्योंकि 

बिना जीवन

सदी 

बहुत खौफनाक लगेगी। 


अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...