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रविवार, 29 जून 2025

जल्द नहीं कटती दोपहर

 बोझिल सी सांझ

के बाद

कोई सुबह आती है

जो दोपहर की तपिश साथ लाती है

और 

उसमें घुल जाया करता है

पूरा जीवन।

उसके बाद 

थके शरीर पर 

होले होले शीतल वायु 

लगाती रहती है मरहम।

फिर 

कोई सांझ बोझिल नहीं होती। 

सुबह, दोपहर और सांझ

यही तो

जीवन है

और 

हरेक का अपना ओरा।

सुबह गहरे इंतजार के बाद होती है

कई स्याह रातों के कटने के बाद।

दोपहर जल्द नहीं कटती

थकाकर पूरी उम्र को चकनाचूर कर देती है।

और 

सांझ उस दौर का नाम है

जब आप थके शरीर को

कमजोर पैरों पर

अनिच्छा भरे माहौल में 

रोज कुछ कदम

चलाते हो, थकाते हो

और 

सो जाते हो...।

दरारों के बीच देखिएगा कहीं कोई पौधा

  कहीं किसी सूखती धरा के सीने पर कहीं किसी दरार में कोई बीज  जीवन की जददोजहद के बीच कुलबुलाहट में जी रहा होता है। बारिश, हवा, धूप  के बावजूद...