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Tuesday, November 15, 2022

शून्यता


तुम मांगो 
फिर भी मैं तुम्हें
नदी नहीं दे सकता
अलबत्ता
एक बेहद जर्जर
उम्मीद दे सकता हूँ
जिसमें गहरा सूखा है
और 
अब तक काफी भरोसा रिसकर 
सुखा चुका है 
नदी की अवधारणा। 
नदी
हमारी जरूरत नहीं
हमारी 
सनक और पागलपन
की भेंट चढ़ी है। 
हमारी शून्यता
ही
हमारा अंत है। 
नदी 
सभी की है
और 
हमेशा रहेगी या नहीं
यह पहेली अब सच है। 
नदी 
पहले विचारों में
प्रयासों में
चैतन्य कीजिए
उसकी
आचार संहिता है
समझिए
वरना शून्य तो बढ़ ही रहा है
क्रूर अट्टहास के साथ


 

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...