तुम मांगो
फिर भी मैं तुम्हें
नदी नहीं दे सकता
अलबत्ता
एक बेहद जर्जर
उम्मीद दे सकता हूँ
जिसमें गहरा सूखा है
और
अब तक काफी भरोसा रिसकर
सुखा चुका है
नदी की अवधारणा।
नदी
हमारी जरूरत नहीं
हमारी
सनक और पागलपन
की भेंट चढ़ी है।
हमारी शून्यता
ही
हमारा अंत है।
नदी
सभी की है
और
हमेशा रहेगी या नहीं
यह पहेली अब सच है।
नदी
पहले विचारों में
प्रयासों में
चैतन्य कीजिए
उसकी
आचार संहिता है
समझिए
वरना शून्य तो बढ़ ही रहा है
क्रूर अट्टहास के साथ