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Tuesday, November 15, 2022

शून्यता


तुम मांगो 
फिर भी मैं तुम्हें
नदी नहीं दे सकता
अलबत्ता
एक बेहद जर्जर
उम्मीद दे सकता हूँ
जिसमें गहरा सूखा है
और 
अब तक काफी भरोसा रिसकर 
सुखा चुका है 
नदी की अवधारणा। 
नदी
हमारी जरूरत नहीं
हमारी 
सनक और पागलपन
की भेंट चढ़ी है। 
हमारी शून्यता
ही
हमारा अंत है। 
नदी 
सभी की है
और 
हमेशा रहेगी या नहीं
यह पहेली अब सच है। 
नदी 
पहले विचारों में
प्रयासों में
चैतन्य कीजिए
उसकी
आचार संहिता है
समझिए
वरना शून्य तो बढ़ ही रहा है
क्रूर अट्टहास के साथ


 

11 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 17 नवंबर 2022 को 'वो ही कुर्सी,वो ही घर...' (चर्चा अंक 4614) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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  2. आभार पुरुषोत्तम जी..।

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  3. सच नदी होना सरल नहीं हर किसी के लिए ........

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  4. मैं तुम्हें
    नदी नहीं दे सकता
    अलबत्ता
    एक बेहद जर्जर
    उम्मीद दे सकता हूँ
    जिसमें गहरा सूखा है....
    जब तक लोग इस बात को समझेंगे तब तक नदी सूखी ही नहीं, मर चुकी होगी शायद।

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  5. ईश्वर ने सब दिया पर इंसान ही संभाल ना पाया |सूखती नदियाँ दुर्भाग्य है इंसान का |एक सूखी उम्मीद है बस देने के लिए | नदी तो केवल प्रकृति दे सकती है अपने संतुलन के साथ | असंतुलित और शापित प्रकृति क्या दे सकती है अब |

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