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Thursday, February 9, 2023

नदी का श्वेत पत्र

हर रात 
नदियां कुरेदी जाती हैं
खरोंची जाती हैं
सुबह तक 
वे 
बाज़ार में होती हैं।
दोपहर तक 
ठिकानों पर
और 
शाम तक 
मकानों की दीवारों में चिन दी जाती हैं।
ऐसे रोज नदियां
घिस रहीं हैं
अंदर से।
उनकी देह रज से बने मकानों में
सदियों से एक सवाल 
सुलझ नहीं पाया 
कि 
आखिर नदियां खोखली क्यों हो रही हैं? 
अनुत्तरित सवाल 
अखबारों में पढ़कर 
गाड़ीवान 
अगली सुबह फिर 
नदी की छाती पर सवार हो जाता है
उसे कुरेदने...। 
हम बहुत चिंता करते हैं
कि 
वाकई भविष्य खतरे में है
नदियां नहीं बचेंगी 
तो 
कैसे बचेगा भविष्य। 
खुरची नदी 
अपने आप को सौंप देती है
उन लौह नखों के वाहक को
अंदर ही अंदर रोती है
चीखती है
और 
गहरे तक 
समा जाती है अपने ही अंतस में।

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...