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रविवार, 29 जून 2025

फांस

 शब्द और उसकी कोरों के बीच

भाव कहीं उलझे रह जाते हैं

अक्सर।

एक उम्र तक

एक सदी तक।

कोई नहीं सुलझाता उन्हें

कोई नहीं खोलना चाहता 

उन उलझी गांठों को। 

कुछ नेह की फांस होती हैं

वह अक्सर

चुभती रहती हैं

मन में

उम्र भर।

देखा है मैंने

ऐसी फांस कोई निकालना भी नहीं चाहता..।

कुछ रिश्ते जीवन भर

महकते हैं

अपने सुखद होने के अहसास के बीच।

हम उन रिश्तों के रेशों को बांधना नहीं चाहते

वे 

हवा में मुस्कुराते ही अच्छे हैं।

सोमवार, 25 जुलाई 2022

सांझ होने पर


नारंगी जिद लिए 

सूरज आया 

अबकी मेरे देस...। 

अबकी 

महुआ तुम्हारे बदन से महकेगा, 

सुनहरी चादर 

सांझ होने पर 

उसे लपेट सूरज

अपने सिराहने  रख 

सो जाएगा 

सदी के किसी सूनसान गांव में 

किसी जिंदा कुएं की 

मुंडेर पर सटकर। 

सुबह 

उसी चादर को झाड़कर 

आसमान को पहना देगा, 

तुम उस सुबह का इंतज़ार करो, 

तब कुछ 

सुनहरा सा वक्त में बीनकर टांक दूंगा 

घर के दालान में 

लगे नीम पर, 

हम नीम की 

उम्मीद वाली छांव में मुस्कुराएं...

 और 

तब सूर्य भी कभी 

सुस्ताने ठहर जाएगा 

वहीं किसी झूलती शाख पर...।

दरारों के बीच देखिएगा कहीं कोई पौधा

  कहीं किसी सूखती धरा के सीने पर कहीं किसी दरार में कोई बीज  जीवन की जददोजहद के बीच कुलबुलाहट में जी रहा होता है। बारिश, हवा, धूप  के बावजूद...