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Wednesday, June 16, 2021

सपने बुनता मजदूर अस्त हो जाता है












सुबह

सूरज के साथ

उग आते हैं

मजदूर सड़कों पर।

पूरा दिन

सिस्टम की अतड़ियों में

खोजते हैं

निवाले।

सूखते दिन में

उम्मीद कई दफा

पसीने सी टपकती है।

फटी जेब में

रुमाल से बंधे

रुपयों में

सपने बुनता मजदूर

अस्त हो जाता है

सूरज के साथ।

अगले दिन

पौं फटते ही

दोबारा उगने के लिए..। 

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