सुबह
सूरज के साथ
उग आते हैं
मजदूर सड़कों पर।
पूरा दिन
सिस्टम की अतड़ियों में
खोजते हैं
निवाले।
सूखते दिन में
उम्मीद कई दफा
पसीने सी टपकती है।
फटी जेब में
रुमाल से बंधे
रुपयों में
सपने बुनता मजदूर
अस्त हो जाता है
सूरज के साथ।
अगले दिन
पौं फटते ही
दोबारा उगने के लिए..।