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Wednesday, May 12, 2021

पक्षियों का बेघर हो जाना


तुम्हारा ढहना

एक

सभ्यता के

चरमराने

और

चटखने

जैसा है।

तुम्हारे

कटकर गिरने

की आवाज़

अगली पीढ़ी

के कानों तक

दे चुकी है दस्तक।

तुम्हारे शरीर पर आरी

के जख्म

इस सदी की पीठ पर

अंकित हो चुके हैं।

तुम्हारे

न होने का आशय है

सैकड़ों

पक्षियों का बेघर हो जाना है।

बेशक तुम्हारी जगह

कोई

आलीशान मकान होगा

पर

वो घर नहीं हो पाएगा।

नींव के नीचे

तुम्हारे अवशेष

कराहते रहेंगे

सदियों तक

और

पूछेंगे सवाल

आखिर मेरा कुसूर क्या था।

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...