Followers

Wednesday, May 12, 2021

पक्षियों का बेघर हो जाना


तुम्हारा ढहना

एक

सभ्यता के

चरमराने

और

चटखने

जैसा है।

तुम्हारे

कटकर गिरने

की आवाज़

अगली पीढ़ी

के कानों तक

दे चुकी है दस्तक।

तुम्हारे शरीर पर आरी

के जख्म

इस सदी की पीठ पर

अंकित हो चुके हैं।

तुम्हारे

न होने का आशय है

सैकड़ों

पक्षियों का बेघर हो जाना है।

बेशक तुम्हारी जगह

कोई

आलीशान मकान होगा

पर

वो घर नहीं हो पाएगा।

नींव के नीचे

तुम्हारे अवशेष

कराहते रहेंगे

सदियों तक

और

पूछेंगे सवाल

आखिर मेरा कुसूर क्या था।

14 comments:

  1. "आखिर मेरा कुसूर क्या था?"

    शायद अब हम इंसान इस सवाल का जवाब ज्यादा बेहतर दे सकते हैं....ये हम अपने गहन चिंतन से नहीं बल्कि वर्तमान परिस्थितियों ने हमें मजबूर किया है जानने के लिए।

    वाकई आपने बहुत बेहतरीन बातें लिखा है। विचारणीय योग्य।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत आभार प्रकाश जी...

      Delete
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 3027...सकारात्मक ख़बर 2-DG (2-deoxy-D-glucose)) पर गुरुवार 13 मई 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका रवींद्र जी।

      Delete
  3. पेड़ के सवाल का कोई जवाब मानव के पास नहीं है,जिस अनुपात से मानव की जनसंख्या बढ़ती जा रही है, लगता है जंगलों और अन्य जीवों के लिए जगह ही नहीं बचेगी

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने...मानव की ये गति प्रकृति को कहीं का नहीं रहने देगी। आभार अनीता जी।

      Delete
  4. नींव के नीचे

    तुम्हारे अवशेष

    कराहते रहेंगे

    सदियों तक

    और

    पूछेंगे सवाल

    आखिर मेरा कुसूर क्या था।इस सवाल का जवाब मानव के पास कहाँ..?वो तो अपने स्वार्थ की पूर्ति करने में प्रलय को निमंत्रण दे रहा है। बेहद हृदयस्पर्शी सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका अनुराधा जी।

      Delete
  5. आज तो केवल पक्षियों के घर की ही बात नहीं , मानव की श्वासों की भी बात हो रही ।।
    विचारणीय रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत आभार आपका संगीता जी।

      Delete
  6. एक पेड़ के कटनेके साथ पक्षी का बेघर हो जाना तय है। पेड़ निस्वार्थ सहयोग का संस्कार है पेड़ भर नहीं। एक पेड़ से ये मार्मिक संवाद यूं ही जारी रहेगा।

    ReplyDelete
  7. जी यदि कोई वृक्ष जब भी गिराया जाएगा तब वो तो चीखेगा अब उसकी चीख हम तक पहुंचती है या नहीं या पहुंचने के बाद भी हम अपने कान बंद कर लेते हैं तब ये तो भविष्य तय करेगा कि हमारा होगा क्या...। आभार रेणु जी

    ReplyDelete

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...