तुम्हारा ढहना
एक
सभ्यता के
चरमराने
और
चटखने
जैसा है।
तुम्हारे
कटकर गिरने
की आवाज़
अगली पीढ़ी
के कानों तक
दे चुकी है दस्तक।
तुम्हारे शरीर पर आरी
के जख्म
इस सदी की पीठ पर
अंकित हो चुके हैं।
तुम्हारे
न होने का आशय है
सैकड़ों
पक्षियों का बेघर हो जाना है।
बेशक तुम्हारी जगह
कोई
आलीशान मकान होगा
पर
वो घर नहीं हो पाएगा।
नींव के नीचे
तुम्हारे अवशेष
कराहते रहेंगे
सदियों तक
और
पूछेंगे सवाल
आखिर मेरा कुसूर क्या था।
"आखिर मेरा कुसूर क्या था?"
ReplyDeleteशायद अब हम इंसान इस सवाल का जवाब ज्यादा बेहतर दे सकते हैं....ये हम अपने गहन चिंतन से नहीं बल्कि वर्तमान परिस्थितियों ने हमें मजबूर किया है जानने के लिए।
वाकई आपने बहुत बेहतरीन बातें लिखा है। विचारणीय योग्य।
बहुत आभार प्रकाश जी...
Deleteवह।
ReplyDeleteआभार आपका।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 3027...सकारात्मक ख़बर 2-DG (2-deoxy-D-glucose)) पर गुरुवार 13 मई 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आपका रवींद्र जी।
Deleteपेड़ के सवाल का कोई जवाब मानव के पास नहीं है,जिस अनुपात से मानव की जनसंख्या बढ़ती जा रही है, लगता है जंगलों और अन्य जीवों के लिए जगह ही नहीं बचेगी
ReplyDeleteसही कहा आपने...मानव की ये गति प्रकृति को कहीं का नहीं रहने देगी। आभार अनीता जी।
Deleteनींव के नीचे
ReplyDeleteतुम्हारे अवशेष
कराहते रहेंगे
सदियों तक
और
पूछेंगे सवाल
आखिर मेरा कुसूर क्या था।इस सवाल का जवाब मानव के पास कहाँ..?वो तो अपने स्वार्थ की पूर्ति करने में प्रलय को निमंत्रण दे रहा है। बेहद हृदयस्पर्शी सृजन।
आभार आपका अनुराधा जी।
Deleteआज तो केवल पक्षियों के घर की ही बात नहीं , मानव की श्वासों की भी बात हो रही ।।
ReplyDeleteविचारणीय रचना ।
बहुत आभार आपका संगीता जी।
Deleteएक पेड़ के कटनेके साथ पक्षी का बेघर हो जाना तय है। पेड़ निस्वार्थ सहयोग का संस्कार है पेड़ भर नहीं। एक पेड़ से ये मार्मिक संवाद यूं ही जारी रहेगा।
ReplyDeleteजी यदि कोई वृक्ष जब भी गिराया जाएगा तब वो तो चीखेगा अब उसकी चीख हम तक पहुंचती है या नहीं या पहुंचने के बाद भी हम अपने कान बंद कर लेते हैं तब ये तो भविष्य तय करेगा कि हमारा होगा क्या...। आभार रेणु जी
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