सच
सपने ऐसे ही तो हैं
सुर्ख
और
रसीले...।
हां
सच यह भी है
जिंदगी
में
हर पल बदलता है
उम्र का चेहरा
और
उम्र के कई पढ़ाव बाद
झुर्रियों के बीच
सूखी आंखों में
सपनों
के सूखे शरीर
टंगे होते हैं
घर की सबसे
बेबस
मजबूरी की डोर
पर
सबसे जिद्दी कील पर।
सपनों के रंग
उम्र के आखिर पढ़ाव पर
मटमैले भूरे हो जाते हैं
तब
आंखों में
यही सपने
गहरे समा चुके होते हैं
समय के
रेगिस्तान