आओ
सूख जाएं कहीं कुछ पल
ताकि जी सकें
प्रकृति की तपती दोपहरी
नाजुक पत्तों पर
गर्म हवा के अहसास
पत्तों के
सूखकर गिरने का आध्यात्म
और
पक्षियों का प्रबंधन।
आओ सूख जाएं
कुछ पल
ताकि जान सकें
सूखकर दोबारा अंकुरित
होना
मुश्किल तो नहीं है।
सूख जाएं
ताकि
समझ सकें
सूखी देह से
बूंद का निर्मल नेह
और
चातक की बिसराई जा रही
प्रेम कथा।
सूख जाएं
ताकि जी सकें
सावन और भादो का उल्लास
जी सके एक रिश्ता
प्रकृति से हमारा।
सूख जाएं
ताकि एक पीढ़ी जान सके
कैसे सहज
छोड़ा जा सकता है शरीर
उम्रदराज़ होने पर
और
कैसे हो सकते हैं
खाद
अगली पीढ़ी की हरी शाखों के लिए।
सूख जाएं
क्योंकि
यह सुख है
प्रकृति का आशीष भी
सूखने के बाद ही
रचा जा सकता है
नया संसार।
सूख जाएं
ताकि समझ सकें
पक्षियों का जल प्रबंधन
जीवन और नवसृजन।
समझ सकें
वृक्षों की दोपहरी से पक्षियों का रिश्ता
उनका आपसी प्रेम।
समझ सकें
कि
पक्षी छोड़ते नहीं हैं
दोपहर में भी
सूखे दरख्तों का साथ।
यही भरोसा हमें
और
हमारी प्रकृति को रखेगा
हमेशा हरा...।