भूख का रंग नहीं होता
आकार भी नहीं
चेहरा होता है
जली हुई रोटी सा
झुलसा और गुस्सैल चेहरा।
फटे जीवन में
जली रोटी की महक
बच्चे की ललचाई और गहरे धंसी आंखों में
जीवन की उम्मीद है।
भूख का एक सिरा
घर की चारपाई से बंधा होता है
और
दूसरा सिरा
बेकारी की फटी छत की तिरपाल से।
भूख की पीठ पर
बेबसी के निशान
उम्र के साथ गहरे होते जाते हैं।
कंदील में रोशनी में
झुलसी रोटी और बच्चे
एक जैसे लगते हैं।
रोटी की स्याह तस्वीर
चेहरे पर हर पल नजर आती है।
भूख का कद
पेट से होकर
उम्र के अंतिम सिरे तक जाता है।
भूख एक उम्मीद पालती है
और
अगले ही पल
बांझ हो जाती है।
भूख पर शोर
एक आदत है, चीख है, सच है।
भूख पर नीति
केवल
चेहरे बनाती है।
चेहरे पर भूख केवल एक सच है
जिसमें तलाशी जाती है भूख
और मिटाई जाती है
भूख।
भूख पर दस्तावेज
अक्सर कोरे नज़र आते हैं
क्योंकि भूख शब्दों में
लिखी नहीं जा सकी अब तक।
भूख
रोती हुई मां के चेहरे पर
चिंता की गहरी झाई है
जिसे
पहले समय
फिर समाज
और आखिर में
बच्चे भी कर देते हैं
अनदेखा।
भूख केवल
पल पल मौत की ओर बढ़ता
हलफनामा है।।